Thursday 10 February 2011

सुहाना हो भले मौसम



 सुहाना हो भले मौसम मगर अच्छा नहीं लगता 
सफर में तुम नहीं हो तो सफर अच्छा नहीं लगता 

फिजां में रंग होली के हों या मंजर दिवाली के 
मगर जब तुम नहीं होते ये घर अच्छा नहीं लगता 

जहां बचपन की यादें हों कभी माँ से बिछुड़ने की 
भले ही खूबसूरत हो शहर अच्छा नहीं लगता 

परिंदे जिसकी शाखों पर कभी नग्मे नहीं गाते 
हरापन चाहे जितना हो शजर अच्छा नहीं लगता 

तुम्हारे हुस्न का ये रंग सादा खूबसूरत है 
हिना के रंग पर कोई कलर अच्छा नहीं लगता 

तुम्हारे हर हुनर के हो गए हम इस तरह कायल 
हमें अपना भी अब कोई हुनर अच्छा नहीं लगता 

निगाहें मुन्तजिर मेरी सभी रस्तों की हैं लेकिन 
जिधर से तुम नहीं आते उधर अच्छा नहीं लगता                                                                             

(चित्र गूगल से साभार )

20 comments:

  1. तुम्हारे हुस्न का ये रंग सादा खूबसूरत है
    हिना के रंग पर कोई कलर अच्छा नहीं लगता

    SHER with a new approach.
    wonderful.

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  2. तुम्हारे हर हुनर के हो गए हम इस तरह कायल
    हमें अपना भी अब कोई हुनर अच्छा नहीं लगता

    क्या करें जज्बाती इंसान को ऐसा ही होता है ...बहुत सुंदर

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  3. परिंदे जिसकी शाखों पर कभी नग्मे नहीं गाते
    हरापन चाहे जितना हो शजर अच्छा नहीं लगता
    Kya khoob panktiyan hain!

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  4. आदरणीय बंधुवर
    जयकृष्ण राय तुषार जी
    सस्नेहाभिवादन !

    श्रेष्ठ सृजन करने वाले ब्लॉगर्स मुझे सदैव आकर्षित करते हैं … आप भी बहुत अच्छा लिखते हैं -
    तुम्हारे हुस्न का ये रंग सादा खूबसूरत है
    हिना के रंग पर कोई कलर अच्छा नहीं लगता

    अंग्रेजी शब्द को बहुत ख़ूबसूरती से क़ाफ़िये में काम में लिया है …

    तुम्हारे हर हुनर के हो गए हम इस तरह कायल
    हमें अपना भी अब कोई हुनर अच्छा नहीं लगता

    समर्पण का यह भाव मन को बहुत मुग्ध कर रहा है …

    हर शे'र काबिले-तारीफ़ है , सारी वाहवाही आपके नाम !

    बसंत पंचमी सहित बसंत ॠतु की हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  5. आदरणीय भाई कुशमेश जी भाई केवल राम जी बहन क्षमा जी भाई राजेन्द्र जी आप सभी का आप सभी का आभार उन दोस्तों का भी जो अभी आयेंगे |

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  6. परिंदे जिसकी शाखों पर कभी नग्मे नहीं गाते
    हरापन चाहे जितना हो शजर अच्छा नहीं लगता ...

    वाह..क्या खूब लिखा है आपने।

    हिना के रंग पर कोई कलर अच्छा नहीं लगता

    भावपूर्ण ग़ज़ल के लिए बधाई।
    कलर क़ाफ़िये में.....वाह...

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  7. "तुम्हारे हर हुनर के हो गए हम इस तरह कायल/ हमें अपना भी अब कोई हुनर अच्छा नहीं लगता"- वाह! रचनाकार अपने को श्रेय न देकर , किसी और को देता है सब श्रेय प्रेम की जुवां में . यह आपसी संबंधों को बनाये रखने के लिए सबसे बड़ा हुनर है. बढ़ी न्स्वीकारें. -अवनीश सिंहचौहान

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  8. आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (12.02.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
    चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)

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  9. आप यूँहीं लिखते रहें
    यूँही अहसासों को बाँटते रहे...
    ये हमें तो अच्छा लगता है...

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  10. धन्यवाद भाई सत्यम जी कल चर्चा मंच पर अवश्य आऊंगा |ग़ज़ल आप सभी अपने दिल के करीब लगी यही एक कवि की कोशिश को सफल करती है |पूजा जी मेरी कोशिश होगी की मैं अपनी और अन्य कवियों /लेखकों की अच्छी रचनाएँ आप सभी तक पहुचाऊ |ब्लॉग पर आने के लिए आप सभी का आभार |

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  11. .

    परिंदे जिसकी शाखों पर कभी नग्मे नहीं गाते
    हरापन चाहे जितना हो शजर अच्छा नहीं लगता ...

    भाषा पर बेहतरीन पकड़ है आपकी , जो आपकी रचनाओं कों बेहद खूबसूरत बना देती है ।
    इस उम्दा रचना के लिए आभार।

    .

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  12. आज पूरे इलाहाबाद की तरफ से जो शुभकामनायें दी आपने , उसके लिए आपका विशेष आभार ।

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  13. परिंदे जिसकी शाखों पर कभी नग्मे नहीं गाते
    हरापन चाहे जितना हो शजर अच्छा नहीं लगता

    दिल की गहराईयों को छूने वाली खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  14. निगाहें मुन्तजिर मेरी सभी रस्तों की हैं लेकिन
    जिधर से तुम नहीं आते उधर अच्छा नहीं लगता
    ...एक-एक शब्द भावपूर्ण ..... बहुत सुन्दर...

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  15. जहां बचपन की यादें हों कभी माँ से बिछुड़ने की
    भले ही खूबसूरत हो शहर अच्छा नहीं लगता

    बहुत सुंदर रचना .बधाई

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  16. आप सबने इस ग़ज़ल को पसंद किया आभार |

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  17. सुहाना हो भले मौसम मगर अच्छा नहीं लगता

    सफर में तुम नहीं हो तो सफर अच्छा नहीं लगता

    फिजां में रंग होली के हों या मंजर दिवाली के
    मगर जब तुम नहीं होते ये घर अच्छा नहीं लगता

    bahut acchi gazal
    aapka sukriya

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  18. परिंदे जिसकी शाखों पर कभी नग्मे नहीं गाते
    हरापन चाहे जितना हो शजर अच्छा नहीं लगता

    achchhee sher hain

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  19. जहां बचपन की यादें हों कभी माँ से बिछुड़ने की
    भले ही खूबसूरत हो शहर अच्छा नहीं लगता..

    भावों को गज़ल में खूब कहा है ...बेहतरीन गज़ल

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  20. परिंदे जिसकी शाखों पर कभी नग्मे नहीं गाते
    हरापन चाहे जितना हो शजर अच्छा नहीं लगता

    वाह, वाह, बहुत बढ़िया शेर।
    तुषार जी, इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए आप को बहुत-बहुत बधाई।

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