Tuesday 23 February 2010

एक गज़ल -तबीयत से यहाँ गंगा नहाकर देखिए साहब

चित्र -गूगल से साभार 
तबीयत से यहां गंगा नहाकर देखिए साहब
फकीरों की तरह धूनी रमाकर देखिए साहब
तबीयत से यहां गंगा नहाकर देखिए साहब

यहां पर जो सुकूं है वो कहां है भव्य महलों में
ये संगम है यहां तम्बू लगाकर देखिये साहब

हथेली पर उतर आयेंगे ये संगम की लहरों से
परिन्दों को मोहब्बत से बुलाकर देखिए साहब

ये गंगा फिर बहेगी तोड़कर मजबूत चट्‌टानें
जो कचरा आपने फेंका हटाकर देखिये साहब

गाल गुलाबी हुए धूप के


इस मौसम में
आज दिखा है
पहला-पहला बौर आम का।

गाल गुलाबी
हुए धूप के
इन्द्रधनुष सा रंग शाम का।

सांस-सांस में
महक इतर सी
रंग-बिरंगे फूल खिल रहे,

हल्दी अक्षत के
दिन लौटे
पंडित से यजमान मिल रहे,
हर सीता के
मन दर्पण में
चित्र उभरने लगा राम का।

खुले-खुले
पंखों में पंछी
लौट रहे हैं आसमान से
जगे सुबह
रस्ते चौरस्ते
मंदिर की घंटी अजान से।

बर्फ पिघलने
लगी धूप से
लौट रहा फिर दिन हमाम का।
खुली-बन्द
ऑंखों में आते
सतरंगी सपने अबीर के।

द्वार-द्वार गा रहा
जोगिया मौसम
पद फगुआ कबीर के
रूक-रूक कर
चल रहा बटोही
इंतजार है किस मुकाम का

गंगा हमको छोड़ कभी मत इस धरती से जाना

चित्र गूगल से साभार 
गंगा हमको छोड़ कभी मत
इस धरती से जाना।
तू जैसे कल तक बहती थी
वैसे बहती जाना।

तू है तो ये पर्व अनोखे
वेद मंत्र सन्यासी,
तुझसे कनखल हरिद्वार है
तुझसे पटना काशी,
जहॉं कहीं हर हर गंगे हो
पल भर तू रुक जाना

भक्तों के उपर जब भी
संकट गहराता है
सिर पर तेरा हाथ
और आंचल लहराता है
तेरी लहरों पर है मॉं
हमको भी दीप जलाना

तू मॉं नदी सदानीरा हो
कभी न सोती हो
गोमुख से गंगासागर तक
सपने बोती हो
जहॉं कहीं बंजर धरती हो
मॉं तुम फूल खिलाना।

राजा रंक सभी की नैया
मॉं तू पार लगाती
कंकड  पत्थर शंख सीपियॉं
सबको गले लगाती
तेरे तट पर बैठ अघोरी
सीखे मंत्र जगाना

छठे छमासे मॉं हम
तेरे तट पर आयेंगे
पान फूल सिन्दूर चढ़ाकर
दीप जलायेंगे
मझधारों में ना हम डूबें
मॉं तू पार लगाना।

यह वर्ष बेमिसाल है होली मनाइये

यह वर्ष बेमिसाल है होली मनाइये
हर शखस फटेहाल है होली मनाइये
मनमोहनी हॅंसी ने रुला करके रख दिया
सौ रुपये में दाल है होली मनाइये

कुर्सी महल पवार के हिस्से में दोस्तों
अपने लिए पुआल है होली मनाइये
घर में नहीं है चीनी तो गुझिया न खाइये
अफसर के घर में माल है होली मनाइये

रंगों में घोटाला है मिलावट अबीर में
मौसम भी ये दलाल है होली मनाइये
हाथों में ले अबीर अमर सिंह न बैठिए
घर में भले बवाल है होली मनाइये

राहुल भी ठाकरे से हैं होली के मूड में
सादा बस एक गाल है होली मनाइये
जनता का जिस्म पड़ गया नीला तो क्या हुआ
सत्ता का चेहरा लाल है होली मनाइये

पाले में नंगा जिस्म ले मरता रहे किसान
मस्ती में लेखपाल है होली मनाइये
पी करके भंग सो रही संसद विधायिका
अपना किसे खयाल होली मनाइये

बहुमत में बहिन जी हैं विरोधी शिकस्त में
हाथी का सब कमाल है होली मनाइये
कैसा है इन्कलाब कोई शोर तक नहीं
बुझती हुई मशाल है होली मनाइये

एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता

चित्र साभार गूगल  एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता सफ़र में धुंध सा बादल, कभी शजर आता इसी से चाँद मुक़म्मल नहीं नज़र आता बताता हाल मैं ...