चित्र -गूगल सर्च इंजन से साभार |
सलीका बांस को बजने का जीवन भर नहीं होता।
बिना होठों के वंशी का भी मीठा स्वर नहीं होता॥
ये सावन गर नहीं लिखता हसीं मौसम के अफसाने।
कोई भी रंग मेंहदी का हथेली पर नहीं होता॥
किचन में मां बहुत रोती है पकवानों की खुशबू में।
किसी त्यौहार पर बेटा जब उसका घर नहीं होता॥
किसी बच्चे से उसकी मां को वो क्यों छीन लेता है।
अगर वो देवता होता तो फिर पत्थर नहीं होता ॥
परिंदे वो ही जा पाते हैं ऊंचे आसमानों तक।
जिन्हें सूरज से जलने का तनिक भी डर नहीं होता॥
चित्र -गूगल से साभार |
नये घर में पुराने एक दो आले तो रहने दो,
दिया बनकर वहीं से मां हमेशा रोशनी देगी।
ये सूखी घास अपने लान की काटो न तुम भाई,
पिता की याद आयेगी तो ये फिर से नमी देगी।
फरक बेटे औ बेटी में है बस महसूस करने का,
वो तुमको रोशनी देगा ये तुमको चांदनी देगी।
ये मां से भी अधिक उजली इसे मलबा न होने दो,
ये गंगा है यही दुनिया को फिर से जिंदगी देगी॥
bahut sundar rachana..........
ReplyDeleteकिचन में मां बहुत रोती है पकवानों की खुशबू में।
ReplyDeleteकिसी त्यौहार पर बेटा जब उसका घर नहीं होता॥
in panktiyon ne man ko chhoo liya
किचन में मां बहुत रोती है पकवानों की खुशबू में।
ReplyDeleteकिसी त्यौहार पर बेटा जब उसका घर नहीं होता॥
Beta aur usse adhik beti! Kitna komal bhaav hai..meri to aankh bheeg gayi..
Kyaa baat hai saaheb !! Behtareen ghazaleN haiN ... Bahut khoob !!
ReplyDeletedear Jupitor ji,
ReplyDeleteकिचन में मां बहुत रोती है पकवानों की खुशबू में।
किसी त्यौहार पर बेटा जब उसका घर नहीं होता॥
the above line is very excellent and touch the heart of any one,
thanks a lot to you.Please contact to me at my mobile, perhaps you remember the days of Bardah Azamgarh.
your's
Rajesh Tiwari(suddu)
Gail India Ltd
Mob. 9639005178
bahut hi sundar abhivykti priyanka
ReplyDeletevery nice manjula rai
ReplyDeletetushar ji badhai yash malviya
ReplyDeleteye ghazlen man ko chhoo gayin sandhya sri
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...बधाई.
ReplyDeleteachchhee kahee Tushar. tum gazalen achchhee kah lete ho. badhaai
ReplyDeleteman ko chhuu gaya apka likha.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने उम्दा रचना लिखा है! बधाई!
ReplyDeleteसलीका बांस को बजने का जीवन भर नहीं होता।
ReplyDeleteबिना होठों के वंशी का भी मीठा स्वर नहीं होता॥
क्या बात है ......!!
ये सावन गर नहीं लिखता हसीं मौसम के अफसाने।
कोई भी रंग मेंहदी का हथेली पर नहीं होता॥
बहुत खूब ......!!
किचन में मां बहुत रोती है पकवानों की खुशबू में।
किसी त्यौहार पर बेटा जब उसका घर नहीं होता॥
लाजवाब ......!!
किसी बच्चे से उसकी मां को वो क्यों छीन लेता है।
अगर वो देवता होता तो फिर पत्थर नहीं होता ॥
बेहद सटीक .....
परिंदे वो ही जा पाते हैं ऊंचे आसमानों तक।
जिन्हें सूरज से जलने का तनिक भी डर नहीं होता॥
अद्भुत ....!!
.हर शे'र मुकम्बल ...अपनी दस्तखत देता हुआ .....बस कम हैं तारीफ के लफ्ज़ .....!!
(२)
नये घर में पुराने एक दो आले तो रहने दो,
दिया बनकर वहीं से मां हमेशा रोशनी देगी।
ये सूखी घास अपने लान की काटो न तुम भाई,
पिता की याद आयेगी तो ये फिर से नमी देगी।
फरक लड़के औ लड की में है बस महसूस करने का,
वो तुमको रोशनी देगा ये तुमको चांदनी देगी।
ये मां से भी अधिक उजली इसे मलबा न होने दो,
ये गंगा है यही दुनिया को फिर से जिंदगी देगी॥
वाह....वाह....वाह.......!!
हर शे'र अपनी गवाही खुद दे रहा है ......बेमिसाल .....!!
किचन में मां बहुत रोती है पकवानों की खुशबू में।
ReplyDeleteकिसी त्यौहार पर बेटा जब उसका घर नहीं होता
बहुत ही खूबसूरत लिखा है ...शुभकामनाये
मेरे ब्लॉग पर इज्जत अफजाई का बहुत शुक्रिया.
हरेक अशार तेरा खूबसूरत है रफीक....
ReplyDeleteएक की तारीफ़ दूसरे की तौहीन होगी!!!!
बाऊ जी,
स्वाद आ गया!
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फिल्लौर फ़िल्म फेस्टिवल!!!!!
ये सूखी घास अपने लान की काटो न तुम भाई,
ReplyDeleteपिता की याद आयेगी तो ये फिर से नमी देगी।
...बड़ी दूर की बात कह दी...पसंद आई ग़ज़लें.
यह तो बहुत अच्छी गजल है...
ReplyDeleteमंगलवार 10 अगस्त को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है .कृपया वहाँ आ कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ....आपकी अभिव्यक्ति ही हमारी प्रेरणा है ... आभार
ReplyDeletehttp://charchamanch.blogspot.com/
आप सबने मेरी गजलेँ पसन्द की ।इसके लिए मैँ दिल से आभारी हूँ।
ReplyDeleteआपकी दोनो गजलें काफी प्यारी लगी।
ReplyDeleteआपकी दोनो गजलें काफी प्यारी लगी।
ReplyDeleteकिचन में मां बहुत रोती है पकवानों की खुशबू में।
ReplyDeleteकिसी त्यौहार पर बेटा जब उसका घर नहीं होता॥
Wah kya bat hai Tushar ji, badi hi suchm bhavnao ko pakada hai aapne, badhai, subhkamnao ke sath...
amit
http://charchamanch.blogspot.com/2010/08/241.html
ReplyDeleteसलीका बांस को बजने का जीवन भर नहीं होता।
ReplyDeleteबिना होठों के वंशी का भी मीठा स्वर नहीं होता॥
किचन में मां बहुत रोती है पकवानों की खुशबू में।
किसी त्यौहार पर बेटा जब उसका घर नहीं होता॥
किसी बच्चे से उसकी मां को वो क्यों छीन लेता है।
अगर वो देवता होता तो फिर पत्थर नहीं होता ॥
परिंदे वो ही जा पाते हैं ऊंचे आसमानों तक।
जिन्हें सूरज से जलने का तनिक भी डर नहीं होता॥
बेहतरीन ग़ज़लें
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नये घर में पुराने एक दो आले तो रहने दो,
दिया बनकर वहीं से मां हमेशा रोशनी देगी।
very nice.
ReplyDeletebahut hi sundar rachna...
ReplyDeletesimply nice......
Meri Nayi Kavita par aapke Comments ka intzar rahega.....
A Silent Silence : Zindgi Se Mat Jhagad..
Banned Area News : Tamil Nadu Chief Minister accords sanction for 5 drinking water projects
tushar ji,
ReplyDeleteachhi ghazalon ke liye badhai!
Dono hi gajalen dil ko choo gayi ..har sher apne aap men bahut hi khubsurat hai..bahut2 badhai
ReplyDeletetusharji bahut hi sundar rachana badhai
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स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आप एवं आपके परिवार का हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ !
नये घर में पुराने एक दो आले तो रहने दो,
ReplyDeleteदिया बनकर वहीं से मां हमेशा रोशनी देगी।
ये सूखी घास अपने लान की काटो न तुम भाई,
पिता की याद आयेगी तो ये फिर से नमी देगी।
रचना पर क्या कहूँ! निशब्द हूँ.शुभकामनायें.
sir ..aap to kamaal ka likhte hai..pahli baar aayi..accha laga..har pankti par 'waah' hai!
ReplyDeletevery nice bhaia
ReplyDeleteexecellent Tusharji.
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति |
ReplyDeleteपुरानी रचनाएँ तलाश रही थी..ये गज़लें पायीं..बहुत बहुत सुन्दर...सभी शेर एक से बढ़ कर एक...
ReplyDeleteबधाई..